पटना:- भारत के किसी भी माननीय न्यायाधीश की मातृ-भाषा अंग्रेज़ी नहीं है। फिर भारत की भाषा हिन्दी से इतनी घृणा और अंग्रेज़ी से प्रेम क्यों? भारत में भारत की भाषा में पक्ष रखने वाले अधिवक्ताओं का तिरस्कार और अपमान क्यों? यदि किसी माननीय की मातृ-भाषा अंग्रेज़ी हो तो वह भी बताएँ माननीय। क्योंकि यह देश अवश्य जानना चाहता है कि भारत के किसी व्यक्ति की कुलभाषा अंग्रेज़ी भी है क्या?
यह प्रश्न शुक्रवार को, वैश्विक हिन्दी सम्मेलन, मुंबई तथा अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन, दिल्ली के संयुक्त तत्त्वावधान में, पटना उच्च न्यायालय स्थित अधिवक्ता संघ के ‘राजेंद्र सभागार’ में, “उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों की भाषा अंग्रेज़ी में परिवर्तन, कब और कैसे?” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में अपना विचार रखते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने किया। उन्होंने कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायालयों में उपयोग की भाषा हिन्दी हो, इसके लिए निरन्तर संघर्षरत अधिवक्ता इन्द्रदेव प्रसाद को, जो कतिपय न्यायाधीशों द्वारा इस हेतु अपमानित होते आ रहे थे, भारत के अधिवक्ताओं का केंद्रीय परिषद ने भी उनका पक्ष लेने के बदले उन्हें ही वकालती कार्य से निलम्बित कर दिया है।
डा सुलभ ने केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष और सांसद मनन कुमार मिश्र से श्री प्रसाद का निलम्बन वापस लेने का आग्रह करते हुए, हिन्दी के पक्ष में उतरने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को चाहिए कि वह हिन्दी को देश की ‘राष्ट्र-भाषा’ घोषित कर दे। यह होते ही स्वतः न्यायपालिका और कार्यपालिका समेत देश की सभी संस्थाओं और संगठनों के कामकाज की भाषा हिन्दी हो जाएगी। वह दिन अब दूर नहीं, जब भारत में अंग्रेज़ी में बात करने वाले लोगों को सच में लज्जा आएगी। अधिवक्ताओं से खचाखच भरे सदन ने तुमुल ध्वनि से डा सुलभ के प्रस्ताव का समर्थन किया कि देश की राष्ट्रभाषा हिन्दी हो।
सभा की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय अधिवक्ता कल्याण समिति के अध्यक्ष धर्मनाथ प्रसाद यादव ने कहा कि इससे बड़े दुर्भाग्य की बात कोई और नहीं हो सकती कि हिन्दुस्तान में हिन्दी भाषा के लिए आंदोलन करना पड़े। भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद ने हिन्दी के लिए जो भावना की थी, वह आज तक पूरी नहीं की जा सकी। श्री यादव ने, वर्ष १९६० में निर्गत राष्ट्रपति के आदेश का उल्लेख करते हुए, कहा कि उसकी कंडिका -१२ वे स्पष्ट उल्लेख है कि राजभाषा आयोग ने सिफ़ारिश की थी कि जहां तक उच्चतम न्यायालय की भाषा का सवाल है, उसकी भाषा इस परिवर्तन का समय आने पर अंततः हिन्दी होनी चाहिए।
अखिल भारतीय भाषा संरक्षण संगठन के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता योगेश चंद्र वर्मा, अरुण कुशवाहा, पटना उच्च न्यायालय अधिवक्ता संघ के संयुक्त सचिव रण विजय सिंह, अजीत कुमार पाठक तथा कुमार अनुपम आदि अधिवक्ताओं और बुद्धिजीवियों ने भी अपने विचार रखे तथा इंद्रदेव प्रसाद का निलम्बन वापस लेने की मांग की। अतिथियों को स्वागत अधिवक्ता सुमन सिंह ने किया। मंच का संचालन संगोष्ठी के संयोजक अधिवक्ता इन्द्रदेव प्रसाद ने किया।